चारों वेदों के ज्ञाता महा पंडित रावण के प्रति जहां समाज में बुराई का प्रतीक मानते हुए नफरत पाली जाती है और दशहरे के अवसर पर बुराई की हार और सच्चाई की जीत के नाम पर रावण का पुतला जलाया जाता है वहीं दूसरी ओर पंजाब के लुधियाना जिले में स्थित पायल शहर में एक परिवार वर्षों से रावण की प्रतिमा की पूजा करता है ।
आपको बता दें कि लुधियाना जिले के पायल शहर में इस परंपरा को निभाने के लिए दुबे परिवार जिसके सदस्य विदेशों के साथ-साथ देश के कई शहरों में बसे हुए हैं दशहरे के अवसर पर यहां पहुंचते हैं और यहां आकर पिछली सात पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा को जस का तस निभाते हैं जिसके चलते दुबे परिवार रावण की पूजा करने के साथ-साथ ही राम मंदिर में भी पूजा अर्चना करते हैं रावण की पूजा के दौरान दुबे परिवार के लोग रावण को शराब चढ़ाने के साथ ही अपने हाथ को चीर कर उसमें से रक्त भी चढ़ाते हैं ।
दुबे परिवार द्वारा जानकारी दी गई कि उनके पूर्वज बीरबल दास दुबे का वंश चलाने के लिए कोई संतान नहीं थी तब वह व्यथित होकर पायल नगर को छोड़कर तीर्थ नगरी हरिद्वार की ओर चल दिए यात्रा के दौरान उन्हें रास्ते में एक साधु मिले जिन्होंने संतान की मनोकामना पूरी करने का उपाय बीरबल दास को बताया और कहा कि जाकर रामलीला करो और दशहरा मनाओ। यह सुनकर उनके दादा बीरबल दास लौट पड़े और उन्होंने पायल आकर रामलीला करते हुए दशहरा मनाया और अगले वर्ष के दशहरे से पहले ही उन्हें प्रथम संतान प्राप्त की कालांतर में हकीम अछारुदास दुबे, तुलसीदास दुबे, प्रभुदयाल दुबे और नारायणदास दुबे नामक उनके चार पुत्र हुए जिन्हें परिवार वाले राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के रूप में मानने लगे परिवार के अन्य लोगों के यहां भी संतानों ने जन्म लिया जिससे परिवार के दिल में आस्था मजबूत हुई और वह दशहरे के अवसर पर पूजा अर्चना करने लगे।
दशकों पूर्व (अगर मंदिर में लगे पत्थर की सत्यता को माने तो लगभग दो सदी ) से चली आ रही है परंपरा आज भी ज्यों की त्यों जीवित है क्योंकि पायल में बने हुए राम मंदिर पर लगे पत्थर में राम मंदिर के निर्माण का वर्ष 1835 दर्ज है रावण की मूर्ति को भी मंदिर के समकालीन ही माना जाता है।
परिवार का मानना है कि उनकी अगली पीढ़ी भी वंश परंपरा के अनुसार इसी प्रकार रावण की पूजा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
वंश की परंपरा के अनुसार दशहरा के दिन सूर्यास्त के समय शराब के साथ रावण को रक्त भी चढ़ाया जाता है
तत्पश्चात रावण की मूर्ति के माथे पर प्रतीकात्मक आग लगाकर अग्नि रस्म भी निभाई जाती है।
शराब और खून चढ़ाने के सवाल के सवाल पर दुबे परिवार के लोगों ने बताया कि एक ओर रावण को जहां राक्षसी पृवत्ति के रूप में जाना जाता है दूसरी ओर महा विद्वान तथा वेदों के ज्ञाता रावण की पूजा की जाती है।
आपको बता दे कि पिछले लगभग 4 दशकों से एक सिख परिवार भी यहां पूजा अर्चना करने आता है जिससे इस मंदिर के प्रति लोगों की मान्यता दिखाई देती है।
स्रोत –साभार गूगल
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