रुकिए क्या आपके नौनिहाल प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं?
एक ओर तो सरकार शिक्षा का अधिकार की बात करती है वहीं दूसरी ओर प्राइवेट स्कूल सरकार और अभिभावक दोनों की इच्छाओं पर पलीता लगा रहे हैं आज नर्सरी का बच्चा भी कई किलो का बैग कंधे पर लादकर जाता है जिसका वजन संभालने में उसके कंधे सक्षम नहीं है वहीं उसके अभिभावकों के कंधे पर भी हजारों रुपए का वोझ डाला जाता है प्राइवेट स्कूल निजी प्रकाशकों की किताब कोर्स में डालते हैं जिसे खरीदने में नाकाम परिवार के द्वारा अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने के सपने आंखों में ही सिमट कर रह जाते हैं ।
बीते मंगलवार को उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में सीईओ द्वारा मारे गए छापों में प्राइवेट स्कूलों में ₹350 तथा इससे अधिक तक की किताबें देखने को मिली हैं जिस पर उन्होंने ने तुरंत कई प्राइवेट विद्यालयों को नोटिस जारी किए हैं साथ ही उन्होंने कहा की निजी प्रकाशकों की इतनी बड़ी कीमतों वाली किताब वह की अपेक्षा अन्य प्रकाशकों
कि यह एनसीईआरटी की किताबें इससे आधी दरों में मिल सकती हैं किंतु प्राइवेट विद्यालय दबाव बनाकर अभिभावकों यह किताबें खरीदने को मजबूर कर देते हैं ।
किंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती क्या कुछ जगह छापे मारकर इस प्रकार की मनमर्जियां खत्म की जा सकती हैं या बड़े अजगरों के ऊपर हाथ डालने में अधिकारी भी सक्षम नहीं है यह एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है क्योंकि बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में प्राइवेट स्कूल खोलना भी आम आदमी के बस की बात नहीं है और इनके मालिकान बड़े-बड़े सरमाएदार और ऊंची पहुंच वाले लोग हैं।
आज विश्व गुरु के रूप में जानी जाने वाली भारत भूमि एक से एक विद्वान वैज्ञानिक और दार्शनिक पैदा करती है देश ने संपूर्ण विश्व को अपने अपने क्षेत्र के रतन दिए हैं आज उस देश में शिक्षा के मंदिर ब्यावासिक केंद्र बन गए है जहां देखो वहां लूट मची है चंद पैसों के लिए स्कूल संचालक अपनी मनमानी कर रहे है। हर स्कूल प्रबंधन सरकारी कोर्स में अपनी पसंद की अपनी नई किताब जिसकी कीमत आम गरीब आदमी चुका पाने में अक्षम होता है बोझ बनाकर लाद दी जाती है ऐसे में आम आदमी अपने बच्चों को कैसे उच्च शिक्षा दिला सकता है।
आपको बता दें कि आज की स्थिति तो यह है कि हर प्राईवेट स्कूल किताबो ड्रेस और टाई बेल्ट की दुकान या तो खुद खोल लेता है या अपनी पसंद के दुकानदार के पास भेज देता है और सबके अपने रेट निर्धारित है
प्राईवेट स्कूलों की इस दबंग मनमानी के आगे लगता है कि सरकारें भी नतमस्तक हैं ऐसे आर्थिक दबाव में हजारों बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते हैं क्योंकि सरकारी स्कूलों की दुर्दशा भी कहीं ना कहीं इसकी एक वजह है।
फोटो:–साभार गूगल
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