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चमोली

उत्तराखंड की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं के बीच तथा समुद्र की सतह से लगभग 32000 फुट ऊपर भगवान बद्रीनाथ के धाम को आज प्रातः श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ पूरे विधि विधान के साथ खोल दिया गया है।
आपको बताते चलें बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की नर नारायण रूप की पूजा अर्चना की जाती है नर और नारायण नामक दो पर्वतों के बीच अलकनंदा नदी के किनारे करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र यह धाम बद्रीनाथ धाम स्थित है।

मान्यताओं के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु यहां कठोर तप कर रहे थे तब माता लक्ष्मी ने बेरी (बद्री) के पेड़ का रूप धारण कर पेड़ बन कर इनको छाया दी थी। जिससे यहां का नाम बद्रीनाथ पड़ गया और इस ग्रुप में सनातन धर्मावलंबियों द्वारा इनकी पूजा अर्चना की जाने लगी। आपको बता दें कि बर्फ से घिरे इस मंदिर में कपाट बंद होने के बाद भी साल भर पूजा होती है जहां 6 महीने नर के रूप में पूजा होती है वहीं 6 महीने नारायण के रूप में पूजा अर्चना की जाती है
इस बार कपाट खुलने से 2 दिन पूर्व मंगलवार को नरसिंह मंदिर जोशीमठ से बद्रीनाथ के रावल आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी के साथ रात्रि प्रवास के लिए योग बद्री मंदिर पांडुकेश्वर पहुंचे तथा अगले दिन बुधवार को प्रातः बेला में ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदिरि ने योग बद्री मंदिर में विधि विधान से पूजा अर्चना की इस पूजा अर्चना के दौरान सैकड़ों महिलाओं ने मांगलिया गीत और मंत्रोचार के साथ डोली को रवाना किया तत्पश्चात पांडुकेश्वर से भगवान बद्री विशाल के साथ बद्रीश पंचायत में रहने वाले भगवान उद्धव और धन के देवता भगवान कुबेर दोनों की डोली आस्था के केंद्र बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना हुई वही पांडुकेश्वर योग बद्री से आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी गाड़ू घड़ा भी हर्षोल्लास के साथ बद्रीनाथ धाम रवाना हुई किसी दिन देर शाम यह डोलियां बद्रीनाथ धाम पहुंच गई है।
आपको बता दें कि इस बार कई क्विंटल फूलों के साथ बद्रीनाथ मंदिर को सजाया गया है एक ओर जहां 20 अप्रैल को भगवान श्री केदारनाथ के कपाटों को विधि विधान के साथ खोल दिया गया है वही 22 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री धामों को भी अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिया गया है। सैनिक बैंड की धुनों एवं मंत्रोच्चारणों के बीच धाम खुलने से पूर्व ही अपने ईष्ट के प्रथम दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं ने सैकड़ों वाहनों के साथ पहुंचना शुरू कर दिया था जिससे आज 27 अप्रैल को 7:10 पर कपाट खुलते ही आम श्रद्धालुओं ने भगवान बद्रीनाथ के दर्शन प्रारंभ कर दिए हैं।
धाम के बारे में प्रचलित कथा और परंपराओं के अनुसार द्वार बंद करते समय बद्री भगवान की प्रतीक शिला पर घी का लेप मंदिर के पुजारियों द्वारा कर दिया जाता है यदि द्वार खोलते समय यह घी सूखा पाया गया तो आने वाला वर्ष सभी के लिए संकट या अकाल का संकेत माना जाता है वही यदि घी यथा स्थिति में मिलता है तो माना जाता है यह वर्ष सभी के लिए सुख और वैभव से परिपूर्ण रहेगा। हालांकि कपाट बंद होने के बाद भी नर और नारायण के रूप में मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य होता रहता है।

साभार:–इंटरनेट

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