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बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर पूर्वोत्तर रेलवे ने जानकारी दी है की रेल शासन द्वारा बुद्ध धर्म के तमाम स्थलों की यात्रा के लिए पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा परिवहन सुविधा उपलब्ध हैं वहीं विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कुमाऊं के लिए भी पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा रेल सुविधा उपलब्ध हैं

पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा सेवित क्षेत्र पर्यटन एवं ऐतिहासिक विरासत की दृष्टि से बहुत ही समृद्ध हैं। पूर्वोत्तर रेलवे जो कि यात्री प्रधान रेलवे है; उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा बिहार की जनता को विश्वसनीय एवं किफायती रेल परिवहन सुविधा उपलब्ध कराकर इस क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।
पूर्वोत्तर रेलवे प्रमुख पर्यटन स्थलों, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्रों से गुजरती है; जिनमें प्रयागराज, वाराणसी, सारनाथ, कुशीनगर, गोरखपुर, मगहर, छपिया, लुम्बिनी, श्रावस्ती, बहराइच, अयोध्या, लखनऊ तथा मथुरा आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त यह प्रकृति के नैसर्गिक विविधताओं से युक्त पर्वतीय क्षेत्र; जैसे- नैनीताल, कौसानी, अल्मोड़ा, रानीखेत के लोकप्रिय रमणीय पर्वतीय स्थलों तथा जिम कार्बेट एवं दुधवा राष्ट्रीय उद्यान जाने वाले पर्यटकों को रेल यात्रा सुविधा उपलब्ध कराती है। पूर्वोत्तर रेलवे सेवित इन पर्यटन स्थलों में से अनेक महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित हैं। पूर्वोत्तर रेलवे क्षेत्र में स्थित महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का विवरण निम्नवत है।
गोंडा-बढ़नी-गोरखपुर रेल खंड पर स्थित सिद्धार्थनगर रेलवे स्टेशन से लगभग 35 किमी. दूरी पर स्थित लुम्बिनी में राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम) का जन्म हुआ था। सम्राट अशोक ने 249 ई. पूर्व में लुम्बिनी आकर 36 फुट ऊँचा एक स्तम्भ निर्मित कराया था, जिसमें लिखा है कि यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। अशोक स्तम्भ, गौतम बुद्ध की माँ का महादेवी मन्दिर, एक पुराने मठ के अवशेष तथा कुछ नये स्तूप यहाँ पर देखने योग्य हंै। सिद्धार्थनगर, शाक्य वंश की प्राचीन राजधानी कपिलवस्तु (पिपरहवा) पहुँचने हेतु रेल का निकटतम रेलवे स्टेशन भी है।
गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी. उत्तर-पूर्व में सड़क मार्ग पर कुशीनगर स्थित है। इसी स्थान पर गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में लिखा है कि वह स्थान जहाँ भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था, नगर के उत्तर-पूर्व की ओर हिरण्यवटी नदी (छोटी गण्डक) के पास साल वृक्षों के कुंजों में स्थित है। यहाँ अनेक बौद्ध मन्दिर हैं। आधुनिक बर्मीज मन्दिर में भगवान बुद्ध की संगमरमर, कांस्य एवं लकड़ी की खूबसूरत तीन प्रतिमायें हैं। यहाँ एक पुस्तकालय भी है, जिसमें विभिन्न भाषाओं की पुस्तकें उपलब्ध हैं। पूर्वोत्तर रेलवे के बड़ी लाइन खंड पर स्थित गोरखपुर जं. एवं पडरौना निकटतम रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से कुशीनगर पहुँचा जा सकता है।
सारनाथ के प्रसिद्ध बौद्ध अवशेष पूर्वोत्तर रेलवे के सारनाथ रेलवे स्टेशन के निकट हैं। इसकी पहचान मृगदाव या हिरणपार्क से होती है। वर्षों की तपस्या के बाद गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने पर यहीं पर अपने पाँच शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया और यहीं से धर्मचक्र प्रवर्तन आरम्भ कराया। सम्राट अशोक ने यहाँ कई स्तूपों का निर्माण कराया। पुरातात्विक संग्रहालय में भारत सरकार का राष्ट्र चिन्ह अशोक स्तम्भ जो कि खुदाई में मिलने के बाद यहाँ रखा गया है और इसमें अनेक बौद्ध स्थापत्य के नमूने प्रदर्शित किये गये हैं। यहाँ पर चीनी मंदिर, जैन मंदिर तथा तिब्बत मंदिर आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
प्राचीन कौशल राज्य की राजधानी श्रावस्ती, गोंडा-बढ़नी बड़ी लाइन रेल खंड पर स्थित बलरामपुर रेलवे स्टेशन से 29 किमी. दूर स्थित है। यह नगर वर्तमान में सहेत-महेत या टॉप्सी-टर्वी टाउन के नाम से जाना जाता है। भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपने जीवन के 24 वर्षाकाल व्यतीत किये। सहेठ-महेठ दो अलग-अलग स्थल हैं, जो कि एक दूसरे से 01 किमी. की दूरी पर स्थित हैं। सहेठ का सम्बन्ध जैतवन के अवशेषों से है जबकि महेठ श्रावस्ती के अवशेषों से सम्बद्ध है। महेठ में अंगुलिमाल का विशाल स्तूप तथा सुदत्त का स्तूप दर्शनीय है।

यह जानकारी पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने दी है

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