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भारत की महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले के जन्मदिवस पर प्रगतिशील महिला एकता केंद्र व इंकलाबी मजदूर केंद्र ने सभा की व श्रद्धांजलि दी। सभा में वक्ताओं ने बात रखते हुए कहा कि सावित्री बाई फुले भारत की पहली अध्यापिका तथा सामाजिक बदलाव की अग्रणी नेत्री व साथ ही प्रसिद्ध कवयित्री भी थी। वे परंपरागत जाति व्यवस्था के खिलाफ अनवरत संघर्ष करती रही। उन्होंने वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। सावित्री बाई फुले 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक किसान परिवार में पैदा हुई। उस समय महिलाओं को पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं था। सामंती जाति व्यवस्था को चुनौती देते हुए दलित व दबे कुचले मेहनतकश समाज की स्त्रियों को पढ़ाने का जिम्मा उठाया जिसके लिए सावित्री बाई फुले जी को सामंती समाज के ठेकेदारों ने काफी उत्पीड़ित व प्रताड़ित किया। लेकिन वे अपने लक्ष्य से जरा भी विचलित नहीं हुई और 1848 में उन्होंने लड़कियों का पहला स्कूल खोला। 1851 तक आते आते उन्होंने 3 स्कूलों की स्थापनाकी जिनमें करीब 150 युवतियां पढ़ रही थी। 1852 में सावित्री बाई फुले ने महिला सेवा मंडल की स्थापना की जिसका काम महिलाओं में व समाज में महिला शिक्षा व उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना था l उन्होंने समाज में फैली सामंती कुप्रथाओं अंधविश्वास ,बाल विवाह ,विधवा को विवाह की छूट न होने आदि के खिलाफ आवाज उठाई। आज भी समाज में सवर्णीय मूल्य मान्यताएं बरकरार हैं आज भी देश के हर कोने से जातिगत उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं । संघ भाजपा के शासन में जातिगत उत्पीड़न की व महिलाओं से हिंसा की घटनाएं बढ़ गई हैं ।ऐसे में सावित्री बाई फुले द्वारा शुरू की गई लड़ाई को आज भी आगे बढ़ाने की जरूरत है।
सभा में प्रगतिशील महिला केंद्र की पुष्पा इंकलाबी मजदूर केंद्र के पंकज ,बाबू भाई,अखिलेश ने बात रखी। सभा में मीना शीला विमला तुलसी पिंकी सुनीता नीतू दीपा मुकेश आदि लोग मौजूद थे।सभा कार रोड बिंदुखत्ता में की गई।

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