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लालकुआं

यूं तो आने जाने वाली तमाम सरकारें विकास की बातें और जन जन तक सुविधा पहुंचाने की बातें करती हैं किंतु पूर्वी बिंदुखत्ता खुरियाखत्ता जो अब विडंबनाओं के चलते श्रीलंका टापू के नाम से जाना जाता है आज भी मूलभूत सुविधाओं से बहुत दूर है स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा जो किसी भी समाज या किसी भी  आमजन के लिए मूलभूत आवश्यकता है।  यह क्षेत्र उन सभी आवश्यक सुविधाओं से महरूम है ।

    आपको बता दें कि कई दशक पूर्व भावर क्षेत्र में पहाड़ी क्षेत्रों की विषम परिस्थितियों से माइग्रेट कर आने वाले एवं पूर्व सैनिकों द्वारा भाबर क्षेत्र में बिंदुखत्ता नामक बसासत प्रारंभ की गई थी विषम परिस्थितियों में रहते हुए परेशानियां झेलने के बावजूद भी यह लोग यहां संकटों से जूझते रहे जिसमें गौला नदी के किनारे बसा पूर्वी बिंदुखत्ता (खुरियाखत्ता) भी इसका अपवाद नहीं है किंतु इसके साथ विडंबना यह रही कि गौला नदी के किनारे बसा होने के कारण 1984 में गौला नदी में तेज बाढ़ आने के बाद  पूर्वी बिंदुखत्ता मुख्य बिंदुखत्ता से कट गया और पानी से घिरा होने के कारण उस समय की परिस्थितियों के अनुसार किसी ने इसको श्रीलंका टापू कह दिया धीरे-धीरे इसका नाम श्रीलंका टापू पड़ गया यहां के निवासी तथा वर्षों से सुविधा के लिए सरकार से पत्राचार करते रहने वाले एवं अपनी गुहार लगाने वाले रमेश सिंह राणा ने बताया कि जब हम कहीं श्रीलंका टापू के नाम से अपना परिचय देते हैं तो लोग हमें अजीब नजरों से देखते हैं कई बार तो हमारे साथ गलत व्यवहार भी किया जाता है उन्होंने बताया कि बिंदुखत्ता के नाम से आने वाली तमाम सुविधाएं हम तक नहीं पहुंचती हैं और मूल बिंदुखत्ता में ही सिमट कर रह जाती है पूर्व में विधायक द्वारा यहां सामुदायिक भवन एवं प्राइमरी स्कूल तथा सीमेंट रोड भी बनाया गया था जिसमें सिर्फ रोड ही बचा है और बाकी भवन बरसों बीत गए बाढ़ की चपेट में बह गए सरकारी सुविधा के नाम पर यहां दुग्ध संघ द्वारा खोला गया दूध कलेक्शन सेंटर मात्र ही है जिससे डेढ़ सौ लीटर से अधिक दूध नैनीताल सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ में जाता है इसको हीआप किसी प्रकार की सुविधा कह सकते हैं बिजली के लिए यहां रह रहे लगभग 50 परिवार बरसों से गुहार लगा रहे हैं किंतु कोई इनका पुरसाहाल नहीं है।

      वहीं क्षेत्र के प्रमुख समाजसेवी राजेंद्र खंनवाल यहां के उद्धार के लिए तमाम प्रयासों में लगे हुए हैं विद्युत विभाग के उच्च अधिकारियों से लगातार संपर्क किए हुए हैं ताकि यहां के लोगों को सुविधाओं से लंबे समय तक महरूम ना रहना पड़े किंतु अधिकारियों की लगातार हीलाहवाली इस सारी कवायद पर प्रश्न चिन्ह लगाती नजर आती है।

    आजाद भारत में जहां हर सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने की बात करती रही है वही उनके वादों की सीमा इस जगह पर आकर खत्म हो जाती है।

अब इसको राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी कहें या सरकारी उपेक्षा 

इस रस्साकशी में यहां के निवासी पिस कर रह गए हैं।

लोगों का कहना है की हमारी हालत तो कुली फिल्म के उस गाने की तरह है कि 

*लोग आते हैं लोग जाते हैं 

हम वहीं पर खड़े रह जाते हैं*

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