लालकुआं
कल चमन था आज एक सेहरा हुआ देखते ही देखते ये क्या हुआ
उत्तराखंड के लालकुआं में नगीना कॉलोनी आज पूरी तरह से ध्वस्त हो गई एक हफ्ता पूर्व रेल प्रशासन द्वारा पुलिस एवं प्रशासन तथा कई अन्य सरकारी विभागों द्वारा संयुक्त रूप से कार्रवाई करते हुए नगीना कॉलोनी को अतिक्रमण के नाम पर नेस्तनाबूद कर दिया गया।
आपको बता दें कि यहां रहने वाले लोगों के द्वारा बताया गया कि पिछले लगभग 35 से 40 वर्षों से बसी इस कॉलोनी में सात हजार से अधिक लोग अपने कच्चे-पक्के घर बनाकर निवास करते थे जिन्हें पिछले कुछ वर्षों से रेलवे प्रशासन अतिक्रमणकारी बताते हुए लगातार वहां से हटने के लिए नोटिस दे रहा था किंतु 18 मई को रेल प्रशासन ने पूर्ण रूप से सक्रिय होते हुए लगभग आधा दर्जन बुलडोजरों के साथ नगीना कॉलोनी पर धावा बोल दिया हालांकि कई लोगों ने विरोध करने की कोशिश भी की किंतु प्रशासन द्वारा सख्ती से विरोध को दबाने के लिए बल प्रयोग करते हुए लोगों के कच्चे पक्के निर्माण ध्वस्त कर दिए गए।
बताते चलें कि नगीना कॉलोनी में दो सरकारी प्राइमरी स्कूल भी वर्तमान में कार्यरत है जिनको रेल विभाग द्वारा नहीं हटाया गया वही मौजूद एक मंदिर को भी अन्यत्र शिफ्ट करने की बात कही गई।
अब सौ बात की एक बात तो यह है कि अवैध बस्तियों के बारे में कई प्रश्न उठते हैं जैसे कि–
1-आज से कई दशक पूर्व से यह बस्ती आबाद है तब से रेलवे प्रशासन द्वारा लगातार बढ़ती जा रही इस बस्ती की अनदेखी क्यों की गई और इस अवैध अतिक्रमण कही जाने वाली बस्ती शुरुआती समय में ही क्यों नहीं हटाया गयाको क्या इसमें रेल अधिकारियों की काहिली शामिल है या कुछ और यह एक अनुत्तरित प्रश्न है ?
2–दूसरी बात जनप्रतिनिधियों द्वारा लगातार ऐसी बस्तियों को बढ़ावा दिया जाता है जिसमें बिजली कनेक्शन पानी कनेक्शन सरकारी स्कूल अथवा अन्य सरकारी योजनाएं पहुंचाते समय इसके लाभ और हानि ना देख कर सिर्फ वोटों की राजनीति की जाती है जबकि इनको सही रूप से स्थाई रूप से कहीं बसाया जा सकता है तो क्यों नहीं बसाया जाता जो इनकी नीति पर प्रश्न चिन्ह लगाती है क्योंकि जब इनके आशियाने टूटते हैं नेस्तनाबूद किए जाते हैं तब यह राजनीतिक चेहरे नदारद हो जाते हैं और कईयों के तो मोबाइल भी बंद हो जाते हैं तब सवाल ये उठता है यह नेता और राजनैतिक नुमाइंदे हैं कहां ?
3–तीसरा यक्ष प्रश्न यह है कि बड़े वादे करने वाली राजनीतिक पार्टियां और विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकारें कोई भी इन बेघर हुए पीड़ितों की गुहार सुनने को तैयार नहीं है कोई भी सरकार इनके पुनर्वास की क्या योजना बनाई गई है इस पर बात करने को तैयार नहीं है क्या यह लोग सिर्फ भेड़ बकरियों की तरह मात्र वोट हैं क्या सरकार के पास इसका कोई हल इनके विस्थापन के लिए कोई योजना है या नहीं राजनीतिक धुरंधरों की चुप्पी कुछ अलग ही कहानी बयान करती है क्या उनकी चुप्पी टूटेगी ?
दूसरी ओर अतिक्रमण के नाम पर लगातार हटाने की अफवाह क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है आप इसको राजनीतिक आकाओं में इच्छाशक्ति की कमी माने या सरकारों में उनका छोटा कद यह भी एक सोचने की बात है।
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